Shubh Pratikon Se Jivan Badlo:- भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से ही स्वास्तिक स्वास्तिक को मंगल का प्रतीक माना जाता है। स्वास्तिक से ही लक्ष्मी व श्री गणेश का सीधा सम्बंध है। स्वास्तिक का सीधा अर्थ शुभ करने वाला है। स्वास्तिक में संपूर्ण विश्व के कल्याण की भावना समाहित है। स्वास्तिक को अलग-2 देशों में अलग-2 नाम से जाना जाता है परन्तु सभी देशों और धर्मों ने स्वास्तिक को शुभता व सौभाग्य का प्रतीक माना है।
ऐतिहासिक मान्यता
पाँच हजार वर्ष पुरानी सिन्धु घाटी सभ्यता में भी स्वास्तिक के निशान मिलते हैं। बौद्ध धर्म में स्वास्तिक को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता हैं। नेपाल में स्वास्तिक की पूजा हरेम्ब नाम से की जाती हैं। बर्मा में महप्रियंत के नाम से जाना जाता है। मिस्र में एक्टन के नाम से जाना जाता है। मेसोपोटोमिया में स्वास्तिक को शक्ति स्वरूप माना जाता है। स्वास्तिक जर्मन के राष्ट्रीय ध्वज में विद्यमान है। वास्तु में स्वास्तिक से चारों दिशाओं का बोध होता है। हिन्दू धर्म के मंगल कार्य में अथवा किसी प्रकार की पूजा और विवाह में भी स्वास्तिक का महत्वपूर्ण स्थान है।
जहाँ गणेश जी को शुभता प्रथम पूज्यनीय स्वरूप में स्थापित करते हुए मूर्ति व चित्र न होने पर स्वास्तिक व सुपारी का प्रयोग किया जाता है। सुपारी पर मोली बांधकर स्वास्तिक पर रखकर पूजागृह में स्थापित किया जाता है। हर रोज पूजा गृह व प्रवेश द्वार पर स्वास्तिक चिन्ह बनाने से नेगेटिव ऊर्जा घर में नहीं आती और पोजिटिव ऊर्जा का संचार होता है। यह हल्दी, कुमकुम आदि सामग्री से बना सकते हैं। स्वास्तिक
खगोलिय मान्यताएँ
ब्रह्माण्ड में आकाश तत्व के अंतर्गत सभी सौर मण्डल एक विशेष चुम्बकीय शक्ति के आकर्षण से निश्चित गति से गतिशील रहते हैं। उसी तरह से सौर मण्डल में पृथ्वी भी अपनी धूरी पर निश्चित गति से गतिशील रहती है तथा इसका चुम्बकीय प्रभाव उतरायण से दक्षिणायन की ओर होता है। यही संकेत स्वास्तिक देता है और पृथ्वी को ऊर्जा देने वाला सरोज भी उतरायण दक्षिणायन की ओर सांकेतिक है।
इसी तरह स्वास्तिक को किसी भी दिशा में रखें घर व बायँ से दायँ दिशा की ऊर्जा की ओर संकेत करता है। इसी तरह भूमण्डल कि चारों दिशाओं में चारों दिशाओं के विकास, निर्माण संरचना एवं गतिशीलता का प्रतीक हैं। स्वास्तिक चारों दिशाओं को ऊर्जा मान बनाता है। यही कारण है कि भवन निर्माण, बहीखाता के प्रथम प्रष्ठ, साधना, पूजा अनेको मांगलिक कार्यों में स्वास्तिक का चिन्ह बना कर पूजा संपन्न की जाती है ।
जिससे वह ऊर्जा शक्ति हमारे जीवन को सौभाग्य व शुभता प्रदान करती हैं। माता महालक्ष्मी धन की देवी का भी शुभ चिन्ह स्वास्तिक माना जाता है और गणेश जी का शुभ चिन्ह भी स्वास्तिक को माना जाता है। मान्यता यह है कि विघ्नहर्ता प्रसन्न हो कर सभी विघ्नों का नाश करते हैं और दोनों देवी देवताओं का धन व शुभता का आशीर्वाद मिलता है।
भूमिका
ओम एक ऐसी उर्जा शक्ति है जिसका प्रयोग हिन्दू धर्म में भगवान शिव से संबंधित कर लिया गया है। ओम की ऊर्जा मात्र से ही मनुष्य का रोम रोम जागरित होने लगता है। ओमओम का उच्चारण मन व शरीर को प्रफुल्लित करता ही है व उसे ऊर्जावान भी बनाता है। अनेक वैज्ञानिक तथ्य ओम के साथ जुड़े हैं। ओम ओम को धर्मों में उच्चतम स्थान प्राप्त है।
माना जाता है
ओम एक ऐसे ध्वनि है जो शुभ्यता का प्रतीक तो है ही साथ में मस्तिष्क को शुन्य बनाता है। ध्यान की गहराइयों में मन मस्तिष्क को ले जाता है। ओमओम ध्वनि अपने आप में ही ऊर्जा से भरा एक पुंज है। ओम को उत्पत्ति का प्रतीक माना जाता है। ऐसा नहीं है कि हिन्दू धर्म में ही ओम को ऊर्जा का स्रोत माना जाता है बल्कि जैन धर्म, बौद्ध धर्म व सिख धर्म में भीओम ओम को विस्तार से बताया गया है।
21वीं सदी में पश्चिमी वैज्ञानिक ओम पर रिसर्च कर रहे हैं। उन्होंने मनुष्य, पानी व अन्य तत्वों पर शोध में ओम ध्वनि का अलग-2 प्रभाव देखा है। कई वैज्ञानिक शोध में ओम ध्वनि को रोगी व्यक्तियों को स्वस्थ करनेओम में प्रयोग कर उन पर अच्छे प्रभाव देखे गए हैं। कई लाइलाज बीमारीयाँ ओम ओमध्वनि से ठीक होते देखा गया हैं। यह ध्वनि मानसिक रोगों के लिए अति लाभदायक है। ओम के 100 से भी अधिक अर्थ दिये गये हैं।
ओम आदि और अन्नत है। यह सभी मंत्रों का सार है। वैज्ञानिक तथ्यों के अनुसार पानी पर ओम की ध्वनि एक श्रीयन्त्र के आकार जैसे लगती है। ओम ब्रह्माण्ड ऊर्जा का एक बहुत बड़ा और धार्मिक स्त्रोत है। वैज्ञानिक आइंस्टाइन ने भी कहा है कि ब्रह्माण्ड फैल रहा है। भगवान महावीर ने स्वयम ध्यान के द्वारा ओम की ऊर्जा को महसूस करते हुए कहा है कि यह अन्हाद ध्वनि है। किसी भी प्रकार की टकराहट अन्हाद है। यह ध्वनि ओम के अभ्यस्त होने के बाद पता चलती है।
ओम
ओम तीन शब्दों के मेल से मिलकर बना है अ ऊ म जिसका मतलब है ब्रह्मा, विष्णु, महेश है। ओम में त्रिदेव समाहित है। इस एक शब्द में ही सारे ब्रह्माण्ड का वास है।
मनुष्य पर ओम का प्रभाव
मनुष्य का मस्तिष्क शरीर का संवेदनशील भाग है। जब मनुष्य ओम का उच्चारण करता है तो उसके Conscious और Unconscious भाग दोनों ही जागृत होते हैं व उनकी कार्य क्षमता बढ़ती है। ओम ध्वनि से मनुष्य के मस्तिष्क के असाध्य रोग भी ठीक होते हैं।
योग में ओम ध्वनि का अपना ही महत्व है। माना जाता है कि मनुष्य एवं अन्य जीवों के शरीर के उपर ओम ध्वनि अन्दर बाहर दोनों तरह से ही कार्य करती है जिसे ओरा कहते हैं। यह प्रत्येक व्यक्ति वस्तु का अलग अलग वस्तु का होता है। कई विशेषज्ञों के अनुसार जिस व्यक्ति का ओरा नेगेटिव होता है वह अनेक रोगों से ग्रस्त होता है। जिस व्यक्ति का ओरा पोजिटिव होता है, उसका स्वभाव शान्त व स्वस्थ होता है।
उसके चेहरे की आभा अलग ही दिखाई देती है। यदि मनुष्य देवशक्तियों जैसे ओम, स्वास्तिक प्रतीक चिन्हों को अपनी साधना उपासना में सम्मिलित करता है तो वह ओम व स्वास्तिक में विद्यमान ऊर्जा को अपनी देह में आत्मसात कर सकता है। ओम की ध्वनि के उच्चारण से आसपास के वातावरण में नेगेटिव ऊर्जा का प्रभाव नष्ट हो जाता है। ओम ध्वनि ब्रह्माण्ड की अन्त ऊर्जा पुंज है जो पोजिटिव ऊर्जा से भरपूर है।
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FAQ Related to Shubh Pratikon Se Jivan Badlo
शुभ प्रतीकों से जीवन कैसे बदल सकते हैं ?
शुभ प्रतीकों को घर के बहार व पूजा कक्ष मे प्रयोग करके जीवन बदल सकते है ।
Final Word for Shubh Pratikon Se Jivan Badlo
हम आशा करते हैं कि आपको हमारा यह आर्टिकल ‘Shubh Pratikon Se Jivan Badlo‘ पसंद आया होगा । अपना किमती देकर यह आर्टिकल ‘शुभ प्रतीको से जीवन बदलो’ पढ़ने के लिए आप सभी का धन्यवाद ।
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