Hartalika Teej Vrat Katha 2021 ki Importance in Hindi

तो आज हम बात करने वाले हैं Hartalika Teej Vrat Katha की । अक्सर Hartalika Teej Vrat Katha के बारे में बहुत सारी जगहों पर अलग-अलग से बात की जाति है। Hartalika Teej Vrat Katha एक वह अभिन्न अंग है पूरे तीज के त्यौहार का जिसके बिना पूरे त्यौहार को संपन्न करना नामुमकिन है।

Hartalika Teej के इस त्यौहार में विवाहित महिलाएं अक्सर व्रत रखा करती हैं । हमारी परंपराओं के हिसाब से विवाहित महिलाएं सुबह भगवान की पूजा किया करतीं हैं। Hartalika Teej Vrat Katha को सुना करती हैं और ऐसा कहा जाता है कि यदि Hartalika Teej Vrat Katha को महिलाएं नहीं सुनती तो वह व्रत और त्योहार पूरा संपन्न नहीं माना जाता ।

Hartalika Teej Vrat Katha 2021 ki Importance in Hindi
Hartalika Teej Vrat Katha 2021 ki Importance in Hindi

तो यही महत्व है Hartalika Teej Vrat Katha का जो कि हम आज आपको इस Article की मदद से बताने का प्रयास करेंगे । हम यह भी आपको बताएंगे की Kajari Teej Vrat Katha का महत्व क्या है । दरअसल Kajari Teej Vrat Katha है क्या तो चलिए शुरुआत करते हैं एक बहुत ही दिलचस्प कहानी से

How Mata Parvati Convinced lord shiv to Marry her? (Teej katha)

( कैसे माता पारवती ने भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त किया)

 हिंदू धर्म ग्रंथों मैं यह कहानी बहुत ही प्रचलित है कि माता पार्वती ने पिछले जन्म में दक्ष प्रजापति की पुत्री सती के रूप में जन्म लिया था माता सती का विवाह भगवान शिव से हुआ था। हमारे धर्म ग्रंथों में यह कहा जाता है कि अपने पिता के घर में एक बार यज्ञ के दौरान अपने पति शिव शंकर के अपमान से क्रोधित होकर माता सती ने अग्नि स्नान किया था ।

वहीं योग अग्नि में अपना देह त्याग कर दिया था। देह त्याग करते हुए उन्होंने यह संकल्प लिया था कि वह पर्वतराज हिमालय के घर पर जन्म लेकर भगवान शिव की अर्धांगिनी बनेंगी । कुछ वर्षों बाद यही हुआ भी माता सती ने पर्वतराज की पत्नी मेना के गर्भ से जन्म लिया और वह पार्वती कह लाईं।

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पार्वती माता का नाम पार्वती इसीलिए ही था क्योंकि वह पर्वत राज हिमालय की पुत्री थी और उन्होंने ही माता पार्वती को यह नाम दिया था। जैसे-जैसे माता पार्वती सयानी हो रही थी तो उनके माता-पिता को उनके विवाह की चिंता सताने लगी थी । एक दिन अचानक देव श्री नारद मुनि पर्वतराज के पास पधारे।

जैसा कि हम जानते ही हैं कि नारद मुनि दूरदर्शी थे तो नारद मुनि को देखकर पर्वतराज बहुत खुश हुए और उन्होंने नारद मुनि का बहुत आदर सत्कार किया और अंत में उनसे अपनी पुत्री के भविष्य में कुछ जानकारी देने की बात कही। पर्वतराज की बात सुनकर नारद मुनि मुस्कुराए और उन्होंने यह कहा की ही पर्वतराज आप की पुत्री आगे चलकर ओ मां अंबे का और भवानी आपके नाम से भी प्रसिद्ध होंगी ।

इस बात के ही आगे उन्होंने अन्य बात जोड़ते हुए यह कहा कि यह आप की पुत्री अपने पति के लिए उनकी जान से भी ज्यादा प्यारी होंगी और उनका सुहाग अचल रहेगा । पर इस बात के अंत में उन्होंने यह कहा कि माता पार्वती को उदासीन एवं माता-पिता से रहित वर मिलेगा |

उन्होंने यह उपाय बताया कि यदि माता पार्वती भगवान शिव की आराधना करें और कठोर तपस्या करें और यदि भगवान शिव उनसे प्रसन्न हो गए तो वह माता पार्वती से विवाह करने के लिए तैयार हो सकते हैं । और यदि भगवान शिव आप की पुत्री से विवाह करने के लिए तैयार हो जाते हैं तो इस कन्या का कल्याण होगा।

देवल श्री नारद मुनि की बात सुनकर माता पार्वती ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या करने का निर्णय लिया । माता पिता के मना करने के बाद भी हिमालय के सुंदर शिखर पर कठोर तपस्या करना आरंभ कर दी उनकी कठोर तपस्या को देख कर और उनके उनके भगवान शिव के प्रति निष्ठा को देखकर बहुत बड़े से बड़े ऋषि मुनि भी दंग रह गए ।

अंत में माता पार्वती की तपस्या को देखकर भगवान शिव ने उनका उनकी परीक्षा लेने के लिए सप्तर्षियों को उनके पास भेजा। देव ऋषि यों के साथ सप्तर्षियों के साथ भगवान शिव भी वेश बदलकर आए उन्होंने माता पार्वती की परीक्षा लेनी चाही ।

पर माता पार्वती की निष्ठा को देखकर और ज्यादा देर तक उस वेशभूषा में रह नहीं पाया । अपने असली रूप में प्रकट हो गए माता पार्वती को उन्होंने वरदान दिया और उनकी इच्छा पूरी की इसके बाद माता पार्वती अपने घर पर लौट आएं ।

उन्होंने अपने माता पिता को भगवान शिव के प्रकट होने और उनके वरदान देने की बात को बताया। उसके बाद भगवान शिव ने प्रसन्न होकर सप्तर्षियों को उनके विवाह का प्रस्ताव लेकर पर्वतराज हिमालय के पास भेजा और उन्होंने विवाह की विवाह का दिन निश्चित करवाया ।

 इस प्रकार भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह निश्चित हुआ और भगवान शिव की बारात लेकर ब्रह्मा विष्णु और इंद्रदेव लेकर आए और इसी प्रकार माता पार्वती का भगवान शिव शंकर का विवाह बहुत धूमधाम से हुआ। ऐसा कहा जाता है कि Teej का त्यौहार इसलिए ही मनाया जाता है । Teej माता पार्वती माता को ही कहा जाता है Teej का त्यौहार इस ही उपलक्ष में मनाया जाता है ।

इसी दिन माता पार्वती ने भगवान शिव को अपनी कठोर तपस्या और 108 बार जन्म मृत्यु के चक्र को पूर्णता पूरा कर प्रसन्न किया था और अपने से विवाह करने के लिए सहमत किया था । तीज का यह त्यौहार इसीलिए ही मनाया जाता है |

ताकि नवविवाहित जोड़े या फिर यूं कहिए विवाहित जोड़े भी माता पार्वती और भगवान शिव जैसे ही विवाह बंधन को निभा सके। इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए भी व्रत रखा करतीं हैं।

Hariyali Teej Vrat Katha 2021 और Hartalika Teej Vrat Katha 2021 व्रत का महत्व 

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सावन महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हरियाली तीज मनाई जाती है । इस त्योहार का महत्व बहुत ही ज्यादा है और इस दिन महिलाएं व्रत किया करती है। Hariyali Teej Katha को सुना करती है और अपने व्रत को पूर्ण किया करते हैं।

वैसे तो Hariyali Teej हमारे देश के कुछ राज्यों में बहुत धूमधाम से मनाया जाते हैं Hariyali Teej का महत्व यह है कि इस दिन Hariyali को पूजा जाता है । भगवान को धन्यवाद दिया जाता है इस हरियाली के लिए इस दिन विवाहित महिलाएं हरे रंग की चूड़ियां पहना करती हैं हरे रंग की साड़ी पहना करती है और उसी में पूजा किया करते हैं।

यदि हम Haratalika Teej Vrat Katha के महत्त्व की बात करें तो Hartalika Teej Vrat Katha का महत्व भी हमारे पौराणिक कथाओं के अनुसार बहुत है । Hartalika Teej के दिन महिलाएं लाल साड़ी पहना करतीं हैं और लाल चूड़ियां पहना करतीं हैं ।

Hartalika Teej के दिन भी व्रत रखा जाता है और अपने पति की लंबी उम्र के लिए कामना की जाती है। उस दिन Hartalika Teej Vrat Katha सुनकर ही व्रत को खोला जाता है और त्यौहार को संपन्न किया जाता है।बहुत लोग बहुत सारी कहानियां सुनाते है पर आज हम Hariyali Teej और Hartalika Teej Vrat Katha की पौराणिक कथा के बारे में चर्चा करेंगे|

जानेंगे कि वह कथा क्या है।ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव ने माता पार्वती को यह कथा उनके पूर्व जन्म याद दिलाने के लिए सुनाई थी तो यह कथा कुछ इस प्रकार है की ।एक दिन कैलाश पर्वत पर बैठकर भगवान शिव और माता पार्वती विश्राम कर रहे थे। तभी माता पार्वती ने भगवान शिव जी से पूछा ।

हे नाथ! आप तो सृष्टि के रचयिता है आप सर्वज्ञाता हैं आपको सभी चीजों का सारी बातों का स्मरण है तो कृपया कर के आप मुझे मेरे पूर्व जन्म की कथा का स्मरण करवाइए। माता पार्वती की बात सुनकर भगवान शिव जी ने कहा हे पार्वती जब युवावस्था में तुम्हारे मन में एक बार मेरे प्रति आस्था जागी थी। तब तुमने मुझे पाने के लिए बहुत ही कठोर तपस्या की थी ।

उस तपस्या के चलते तुमने अपना बहुत वर्षों का वक्त बिना कुछ खाए बिना कुछ भी है हिमालय पर्वत पर बिताया । उस वक्त में तुमने अन्न जल त्याग कर सिर्फ पत्ते खाए । सर्दी गर्मी बरसात में इतने कष्ट सहते हुए भी तब करना प्रारंभ किया और वह तब को कभी किसी भी अवस्था में बीच में नहीं छोड़ने का निश्चय किया।

तुम्हारे इसी कष्ट को देखकर तुम्हारे पिता पर्वतराज बहुत दुखी थे एक दिन अचानक नारद मुनि आप तुम्हारे घर पधारे। उन्होंने विष्णु जी का संदेश ले जाते हुए और तुम्हारे पिता को वह सुनाते हुए यह कहा कि मैं विष्णु भगवान के कहने पर आपके पास आया हूं पर्वतराज। उन्होंने पर्वतराज को यह कहा कि मैं विष्णु जी के विवाह का प्रस्ताव आपकी पुत्री के लिए लेकर आया हूं।

पर्वतराज यह सुनकर बहुत खुश हुए और उन्होंने विष्णु जी से तुम्हारा विवाह करने के लिए सहमति दे दी। पर्वतराज ने आगे कहा कि नारद मुनि यह आप कैसी बातें कर रहे हैं यह तो मेरा सौभाग्य होगा यदि मेरी पुत्री का विवाह सृष्टि का भार उठाने वाले से हो और स्वयं विष्णु भगवान से हों तो मुझे इसमें क्या आपत्ति होगी।

नारद मुनि पर्वतराज की हां सुनकर बहुत खुश हुए और उन्होंने यह समाचार भगवान विष्णु को सुनाएं। विष्णु जी ने यह समाचार सुनकर बहुत प्रसन्नता दिखाई और यह बात जब तुम्हारी सखियों को पता चली तो वह यह समाचार लेकर तुम तक पहुंचे और तुम्हें यह समाचार सुनाया तो तुम बहुत दुखी हो गई।

तुम्हारे मन में केवल मैं ही बसा हुआ था अतः तुम ने भगवान विष्णु से विवाह के प्रस्ताव को ठुकरा दिया और अपनी सहेलियों से इस बात का अनुरोध किया कि मेरे मन में सिर्फ भगवान शिव का निवास है मैं भगवान विष्णु से विवाह नहीं कर सकती तुम्हारी सखी ने तुम्हारी मदद करने का वचन दिया ।

उसी की सहायता से तुम एक ऐसी गुफा में छुप गई जहां कोई भी आसानी से नहीं पहुंच सकता था। तुम तक उस गुफा में पहुंचना मुश्किल था और उस गुफ़ा में छिपने के बाद उन्हें तुम अपने आप में दोबारा तपस्या में लीन कर लिया ।

गुफा में छिपने वजह से तुम्हारे पिता तुम्हें ढूंढ नहीं पाए और वह तुम्हारे ना मिलने से बहुत ही दुखी हो गए । वह इस बहुत ही चिंतित भी हो गए तुम ना जाने कहां चलीं गईं हो । उन्हें इस बात की चिंता भी सताने लगी कि यदि उनकी पुत्री मतलब तुम नहीं मिली तो वह भगवान विष्णु को क्या मुख दिखाएंगे ।

उन्हें इस बात का डर सताने लगा कि यदि बारात लेकर विष्णु जी आ जाएं तो उन्हें कितनी लज्जा का सामना करना होगा।

इतना सुनते हुए माता पार्वती ने भगवान शिव से पूछा कि स्वामी इसके पश्चात क्या हुआ ।फिर भगवान शिव ने पार्वती जी से कहा तुम्हारे पिता ने तुम्हें खोजने के लिए आकाश पाताल एक कर दिए थे । पर फिर भी तुम ना मिलीं तुम गुफा में अपनी सुध बुध खो कर रेत से शिवलिंग बनाकर मेरी आराधना में इस प्रकार लीन थीं। की उस गुफा के बाहर दुनिया में क्या चल रहा था|

तुम्हें इस बात से कोई मतलब ही नहीं था। तुम्हारी अत्यंत निष्ठा और कठोर तपस्या को देख कर मुझसे रहा नहीं गया और अंत में मुझे वहां पर प्रकट होना ही पड़ा । मुझे साक्षात देख कर तुम अत्यंत प्रसन्न थी। तुम्हें मैं तुम्हारी इच्छा पूर्ण करने का वरदान देकर वापस कैलाश पर लौट गया था। तुम्हारे पिता भी तुम्हें ढूंढते हुए उस गुफ़ा तक पहुंच गए थे । तुम्हारे पिता को तुमने सारा वृत्तांत भी सुनाया ।

सारा वृतांत सुनने के बाद तुम्हारे पिता ने नारद मुनि से भगवान विष्णु से विवाह ना करने के लिए क्षमा मांगी। तुम्हारी इस इच्छा के सामने उन्हें झुकना ही पड़ा इस प्रकार तुम्हारा और मेरा विवाह संपन्न हुआ। उस समय तुम्हारे कठोर व्रत के कारण ही ऐसा संपन्न हो पाया ।

इसी प्रकार जो भी स्त्री Hariyali Teej और Hartalika Teej के दिन अपने पति के लिए व्रत रखतीं है और व्रत को पूरी निष्ठा के साथ पूर्ण करतीं है तो भगवान् शिव उन्हें भी मनवांछित फल देते हैं ।तो यह है Hariyali Teej Katha और Hartalika Teej कथा।

Kajari Teej कथा 2021 और व्रत का महत्व

Kajari Teej या Kajali Teej भाद्र मास के कृष्ण पक्ष के तृतीय को कजरी तीज का यह महोत्सव मनाया जाता है।इस त्यौहार के दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखा करतीं हैं । इसी के साथ में कुंवारी लड़कियां अपने अच्छे वर के कामना के लिए यह व्रत रखा करतीं हैं । इसी व्रत को कजली तीज या फिर कजरी तीज का व्रत कहा जाता है ।

इसका महत्व भी इसीलिए बहुत ज्यादा है क्योंकि इस व्रत को सावन के महीने में पूर्ण किया जाता है । वह महीना विवाहित महिलाओं के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण महीना कहलाता है Kajari Teej व्रत कथा कुछ इस प्रकार है की 

एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ रहा करते थे । एक साल की बात है Kajari Teej आई और ब्राह्मण की पत्नी ने Kajari Teej का व्रत रखा था। ब्राह्मण की पत्नी ने ब्राह्मण से कहा कि आज मेरा Kajari Teej का व्रत है तो मेरे लिए आप सत्तू ले आना ।

यह सुनकर ब्राह्मण ने उत्तर दिया कि हम बहुत गरीब है मेरे पास इतने पैसे नहीं कि मैं सत्तू ला सकूं । यह सुनकर ब्राह्मण की पत्नी ने उत्तर दिया कि यदि सत्तू नहीं आया तो मेरा व्रत पूर्ण नहीं होगा। आप किसी भी प्रकार सत्तू लेकर आइए यह बात सुनकर ब्राह्मण चिंतित हो गए और सोचने लगे की सत्तू कहां से और कैसे लाया जा सकता है।

रात्रि के समय ब्राह्मण अपने घर से निकले और एक साहूकार की दुकान में चोरी छुपे घुस गए । ब्राह्मण ने चने की दाल, चीनी , घी लेकर सवा किलो वजन कर सक्तु बना लिया। वह छुपा कर ले जाने की तैयारी में जैसे ही बाहर की ओर भागने लगे। तो दुकान का नौकर उठ गया और चोर-चोर चिल्लाने लगा उन्होंने ब्राह्मण को पकड़ लिया।

साहू का भी यह बात सुनकर दौड़े चले आए और उन्होंने ब्राह्मण को बहुत गुस्से में पूछा कि क्यों रे चोर तू यहां पर क्या चोरी करने आया है । ब्राह्मण ने इसका उत्तर दिया कि मैं मेरी पत्नी का आज Kajari Teej का व्रत है और वह व्रत खोलने के लिए ही में सवा किलो सत्तू बना कर ले जा रहा था।

आप मेरी तलाशी ले लीजिए मेरे पास सत्तू के अलावा और कुछ भी नहीं है ।ब्राह्मण की तलाशी जब साहू कार के नौकर ने ली सत्तू के अलावा उनके पास और कुछ भी नहीं मिला । उधर चांद भी निकल आया था और ब्राह्मण की पत्नी ब्राह्मण का इंतजार कर रही थी।

 साहूकार ने ब्राह्मण की गरीबी और ईमानदारी से प्रसन्न हो कर ब्राह्मण की पत्नी को धर्म बहन बना लिया और पूजा की सामग्री, सत्तू, कपड़े और बहुत सारे गहने , धन देकर ब्राह्मण को विदा किया।तो इस प्रकार Teej माता ने ब्राह्मण के दिन फेरे उसी प्रकार Teej माता ने अपनी कृपा सब पर बनाए रखें।

Note – इस Article में दी गई जानकारी विभिन्न सूत्रों से पंचांग ओं से ज्योतिष आचार्यों के कथनों से धर्म ग्रंथों से ली गई है और आप तक पहुंचाई गई है हमने यह Article सिर्फ सूचना प्रदान करने के लिए ही बनाया गया है । इस Article का उद्देश्य सिर्फ उपयोगकर्ता को सूचना पहुंचाना ही है यदि आप इस Article में दी गई किसी भी जानकारी का उपयोग उपयोगकर्ता स्वयं की जिम्मेदारी पर ही करें।

FAQ Related To Hartalika Teej Vrat Katha 2021 का महत्व

Can Unmarried Girls keep Teej Fast? क्या कुंवारी लड़कियां Teej का व्रत रख सकतीं हैं?

जी हां कुंवारी लड़कियां तीज का व्रत रख सकती हैं और बहुत जगह पर रखती हुई है वैसे तो मान्यता है कि तीज का व्रत विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र की कामना के लिए रखा करते हैं पर कुंवारी महिलाएं भी अच्छे वर की कामना के लिए यह व्रत को रख सकती हैं।

Is Hariyali Teej Vrat Katha And Hartalika Teej Vrat Katha is same? Kya Hariyali Teej Vrat Katha और Hartalika Teej Vrat Katha एक ही है ?

जी हां Hariyali Teej Vrat Katha और Hartalika Teej Vrat Katha दोनों एक ही कथा हैं जिसका वर्णन हमने ऊपर इस Article में किया है ।उन दोनों Teej पर यह एक कथा पढ़ सकते हैं दोनों के मायने एक ही हैं और दोनों Teej पर यह कथा पढ़ी जा सकती है।

In which State Kajali Teej is Celebrated Majorly? (किस राज्य में Kajari Teej ज्यादा मनाई जाती है? )

राजस्थान में Kajari Teej ज्यादा मनाई जाती है । राजस्थान के बहुत से शहर और गांव में इस त्यौहार को बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस त्यौहार के अवसर पर बहुत सारी जगहों पर मुख्य पूजा का आयोजन किया जाता है।

Are Kajari Teej,satudi Teej And Bhado Teej same? (क्या Kajari Teej , भादो Teej , सातुड़ी Teej एक ही है?)

जी हां राजस्थान में Kajari Teej को ही सातूडी Teej और भादो Teej के नाम से जाना जाता है । इस Teej के त्यौहार पर महिलाएं भगवान शिव की पूजा किया करती हैं। उनका आशीर्वाद पाने के लिए व्रत रखा करतीं हैं।

Which festival is called Mehandi Parv? (मेहंदी पर्व किस पर्व को कहा जाता है? )

हरियाली तीज या हरतालिका तीज को मेहंदी पर्व के नाम से भी जाना जाता है ।बहुत राज्य में ऐसी मान्यता है कि हरियाली तीज या फिर हरतालिका तीज के दिन पर विवाहित महिलाएं हाथों में हिना मेहंदी लगाया करती है ।  इस दिन वह माता पार्वती को भी मेहंदी अर्पित किया करती हैं। इसीलिए इस तीज के त्यौहार को मेहंदी पर भी कहा जाता है।

Final Words Hartalika Teej Vrat Katha 2021 का महत्व

इस Article के माध्यम से आज हमने यह प्रयास किया कि हम आपको तीज माता कि इस त्यौहार की सारी कथाओं से अवगत करवा पाए जिसमे हमने Hartalika Teej Vrat Katha के बारे में जाना । इस Article की मदद से हमने आपको यह बताने का प्रयास किया कि कैसे भगवान शिव और माता पार्वती का मिलन हुआ । कैसे माता पार्वती ने भगवान शिव को तपस्या से मनाया अपने से विवाह करने के लिए।

 आशा है आप लोगों को के लिए या Article लाभदाई होगा अपना कीमती समय निकालकर इस Article को पढ़ने के लिए धन्यवाद!

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