50 amazing Life Changing Stories : Danveer Karna Ki Katha Hindi Kahani

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Danveer Karna Ki Katha Hindi Kahani
Danveer Karna Ki Katha Hindi Kahani

Danveer Karna Ki Katha Hindi Kahani : दानवीर कर्ण हम बचपन से दानवीर कर्ण की कहानियां सुनते आते हैं हमें बताया जाता है कि दानवीर कर्ण इतने अच्छे इंसान थे और वह दान धर्म करते थे पर उन्होंने अपने क्रोध वर्ष गलत लोगों का साथ दिया इसी की वजह से उन्हें महाभारत में एक ऐसे इंसान के तौर पर जाना जाता है कि जो अच्छे तो थे पर साथ गलत होने की वजह से इतिहास उन्हें भी गलत मानता है श्री कृष्ण खुद उनकी दानवीरता के बहुत प्रशंसक थे ।

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और अर्जुन को इस बात से कहीं ना कहीं निराशा भी थी कि दान तो अर्जुन और युधिष्ठिर भी करते थे पर श्री कृष्ण कभी भी उनकी तारीफ नहीं करते थे तो चलिए आज की इस कहानी संग्रह में हम आप लोगों के लिए एक ऐसी ही कहानी लेकर आए हैं जिसमें आपको पता चलेगा की दानवीरता किसे कहते हैं और क्यों कारण को दानवीर सबसे बड़ा माना जाता है इस कहानी के माध्यम से हम आप लोगों को बताने का प्रयास करेंगे।

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ये कहानी उस वक्त की है जब एक बार की बात है अर्जुन के दरबार में एक ब्राह्मण आया और ब्राह्मण ने विलाप करते हुए अर्जुन को बताया कि उसकी पत्नी की मृत्यु हो गई है और उसे चंदन की लकड़ी चाहिए अपनी पत्नी की मृत शरीर को मुखाग्नि देने के लिए अब अर्जुन ने अपने मंत्री को बुलाया और उनसे कहा कि राजकोष में से चंदन की लकड़ियां निकाल कर इन्हें दे दीजिए अर्जुन हमेशा श्री कृष्ण सवाल पूछा करते थे ।

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कि क्यों आप उनकी प्रशंसा नहीं करते और क्यों युधिस्टर और अर्जुन के दान करने के बावजूद हमेशा कर्ण की प्रशंसा श्री कृष्ण भगवान करते थे अर्जुन के इस सवाल पर श्री कृष्ण मुस्कुराया और उन्होंने कहा कि इस सवाल का जवाब भी तुम्हें जल्द ही मिल जाएगा और जैसे ही मंत्री लौट कर आया तो मंत्री ने कहा कि ना तो राजकोष में चंदन की लकड़ियां बची है और ना ही पूरे राज्य में कहीं चंदन की लकड़ियां है इस बात को सुनकर अर्जुन को अचंभा हुआ

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और फिर से उन्होंने मंत्री को भेजा कि आप जाइए और कहीं ना कहीं से तो चंदन का इंतजाम कीजिए पर अगली बार भी मंत्री निराश और खाली हाथ ही लौटे और उन्होंने कहा कि पूरे राज्य में चंदन की लकड़ी या कहीं भी नहीं है इस पूरे वाख्य को श्री कृष्ण भगवान देख रहे थे और अर्जुन ने हाथ जोड़कर क्षमा मांगते हुए ब्राह्मण से कहा कि आपके लिए चंदन कि लकड़ी का इंतजाम में नहीं कर पाया मुझे क्षमा कीजिए श्री कृष्ण ने जब यह सारा वाख्या आकर देखा तो

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उन्होंने ब्राह्मण से कहा कि आप मेरे साथ में चलिए मैं एक जगह ऐसी जानता हूं जहां पर आपको यह मिल सकती हैं और अर्जुन ने और श्री कृष्ण भगवान ने एक ब्राह्मण का वेश धारण किया और वह उन ब्राह्मण के साथ में दानवीर कर्ण के पास पहुंचे करण ने भी अपने मंत्री को आदेश दिया कि आप जाइए और ब्राह्मण के लिए चंदन की लकड़ियों का इंतजाम कीजिए दानवीर कर्ण की बात सुनकर उनके मंत्री गए और

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उन्होंने पूरे में छान मारा पर चंदन की लकड़ी या कहीं नहीं मिले इस बात को आकर उन्होंने करण को बताया और करण को बताने के बाद वह बोले कि पूरे राज्य में कहीं भी लकड़ियां नहीं है महाराज अब आप ही बताइए कि हम कैसे इसका इंतजाम करें इस बात को सुनकर कांड ने बोला कि हमारे राज्य में जो चंदन के खंभे लगे हुए हैं उसे तोड़कर आप इन ब्राह्मण को लकड़ी दीजिए यह बात सुनकर श्री कृष्ण भगवान मुस्कुराए और अर्जुन की तरफ देखने लगे

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और राज्य से बाहर आकर अर्जुन से कहने लगे कि देखो तुम्हारे पास भी यह मौका था तुम्हारे राज्य में भी तुम्हारे महल में भी चंदन के खंभे बने हुए हैं और तुमने उस ब्राह्मण को निराश किया और वहीं दूसरी ओर करण था जिसने अपने महल के खंभों को तुड़वा कर ब्राह्मण को ना निराश करते हुए अपनी दानवीरता का परिचय दिया और उसे चंदन की लकड़ी देकर विदा किया इस बात को देखकर अर्जुन को अपनी गलती का एहसास हो चुका था और वह मान चुके थे कि सच में कारण ही सच्चे दानवीर हैं और सबसे बड़े दानवीर है

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इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपने जीवन में दान धर्म करना चाहिए क्योंकि दान ही सबसे बड़ा धर्म है और दान वह नहीं होता जो आप समृद्धि स्थिति में करते हैं बल्कि असली दान तो वह होता है जब आपके पास भी अभाव हो और आप से कोई दान मांगने आए और उसकी आपसे भी बुरी अवस्था हो और आप अपनी दयनीय अवस्था होने के बावजूद भी उसे दान में वह चीज दे रहे हैं जिसकी कमी या अभाव आपके पास पहले से ही है।

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