Shaktipat Kya Hai | 7 Spiritual Benefits of Shaktipat in Hindi

Shaktipat Kya Hai (शक्तिपात क्या है?):- शक्तिपात दो शब्दों से मिलकर बनता है- शक्ति + पात । अर्थात शक्ति को दूसरे व्यक्ति के अंदर डालना शक्तिपात कहलाता है। शक्तिपात एक आसान क्रिया नहीं है। ना ही इस क्रिया को कोई आम गुरु कर सकता है। यह क्रिया एक गूढ ज्ञान, ध्यान, अनुभव, जप और तप का एक विज्ञान है। शक्तिपात को किसी भी व्यक्ति को देने से पहले गुरु को स्वयं अपने अंदर ऊर्जा को एकत्रित करना पड़ता है। यह ऊर्जा सालों की ध्यान और तपस्या से मिलती है। शक्तिपात को लेने से पहले इसके विषय में जान लेना चाहिए । ऊपर मैने आपको बताया कि (Shaktipat Kya Hai) शक्तिपात क्या है? आई इसके विषय में और अधिक जाने ।

शक्तिपात कैसे किया जाता है? (Shaktipat Kaise Kiya Jata Hai?):-

शक्तिपात क्रिया ध्यान अवस्था में बैठ कर किया जाता है । पहले शिष्य को ध्यान अवस्था में बीठा दिया जाता है । फिर गुरु अपने अंगूठे से शिष्य के माथे पर शक्तिपात करते हैं । शक्तिपात को अपने अंदर समाहित करने के लिए शिष्य में विशेष योग्यता होनी चाहिए । अन्यथा दिया गया शक्तिपात व्यर्थ हो जाता है । शक्तिपात को लेते समय शिष्य के नीचे कोई आसन, कालीन या मोटा सूती कपड़ा रखना चाहिए ।

Shaktipat Kya Hai | 7 Spiritual Benefits of Shaktipat in Hindi
Shaktipat Kya Hai | Best Spiritual Benefits of Shaktipat in Hindi

शक्तिपात कितने तरीके से किए जाता है :-

शक्तिपात कई तरीके से किया जाता है जिनका विवरण इस प्रकार से है :-

1. मंत्रों के द्वारा

2. नेत्रों के द्वारा

3. स्पर्श के द्वारा

4. फ़ोटो के द्वारा

1. मंत्रों के द्वारा :-

शक्तिपात मंत्रों के द्वारा भी किया जाता है । इस शक्तिपात क्रिया में विशेष प्रकार के सिद्ध मंत्रों का प्रयोग किया जाता है। याद रहे इस शक्तिपात को कोई सिद्ध गुरु ही कर सकता है। आज के समय में ऐसे गुरु बहुत काम हैं । किसी भी शक्तिपात को लेने से पहले अपनी Awareness से काम लें । किसी पर ऐसे ही विश्वास नया करें ।

2. नेत्रों के द्वारा:-

नेत्रों के द्वारा गुरु अपनी तपस्या ऊर्जा को अपने शिष्य के अंदर उतरते हैं। इस शक्तिपात को लेते समय शिष्य के पैरों के नीचे कोई आसन जरूर होना चाहिए । अन्यथा गुरु द्वारा दिया गया शक्तिपात व्यर्थ हो जाएगा । शक्तिपात लेते समय अपने मन को शांत रखना चाहिए । यदि संभव हो तो निर्विचार रहना चाहिए और अपने अंदर लेने का विशेष भाव होना चाहिए ।

3. स्पर्श के द्वारा:-

शक्तिपात की यह क्रिया सबसे विशेष है । इसमें गुरु अपने अंगूठे, हाथ या शरीर के किसी अंग के द्वारा शिष्य को शक्तिपात देते हैं। इसमें गुरु अपनी शक्ति के द्वारा शिष्य के चक्रों को जागृत करता है।

4. फ़ोटो के द्वारा :-

जब व्यक्ति स्वयं गुरु के पास पहुचने में असमर्थ होता है तब गुरु शिष्य को फ़ोटो के द्वारा दीक्षा शक्तिपात देते हैं । और शिष्य के अंदर ज्ञान चेतन को जागृत करते हैं ।

शक्तिपात के प्रकार (Type of Shaktipat):-

अब जिस शक्तिपात का जिक्र में करने जा रहा हूँ वह सर्वदा गोपनीय रहा है जिनका विवरण इस प्रकार से हैं :-

विशेष शक्तिपत

ऊर्ध्व शक्तिपात

दिव्यपात

ब्रह्म शक्तिपात

ये शक्तिपत के वह विशेष प्रकार हैं जिनका विवरण लगभग न के बराबर है। इन शक्तिपतों को देने के लिए केवल सिद्धाश्रम का गुरु ही योग्य होता है । इनमें से एक हैं परमहंस स्वामी निखिलेश्वरनन्द महाराज हैं। जोकि परमहंस स्वामी सचीदयानंद महाराज के प्रिय शिष्य और सिद्धाश्रम के संचालक भी हैं।

दो विधि से शक्तिपात दिया जाता है:-

1. Direct Shaktipat:- जब गुरु शिष्य दोनों आमने सामने होतें हैं । तब शक्तिपात की इस क्रिया को सम्पन्न किया जाता है ।

2. Distance Shaktipat:- जब शिष्य गुरु से दूर होता तब गुरु अपने शिष्य को इस विधि से दीक्षा शक्तिपात देते हैं ।

Spiritual Benefits of Shaktipat:-

1. गुरु का मुख्य कार्य शिष्य के अंदर ज्ञान का जागरण करना होता है । यह शक्तिपात सबसे विशेष लाभ हैं।

2. शक्तिपात के कुंडलिनी जागरण होता है।

3. षटचक्र जागरण व भेदन होता है।

4. ध्यान सिद्धि होती है ।

5. औरा मजबूत होता ।

6. साधना में सिद्धि मिलती है।

7. हमारे मनोरथ पूरे होते हैं।

FAQ Related to Shaktipat Kya Hai

शक्तिपात दीक्षा क्या है ?

शक्तिपात के द्वारा दीक्षा देना शक्तिपात दीक्षा कहलाता है। शक्तिपात के विषय में हमने पहले ही ऊपर बता दिया है। दीक्षा कई प्रकार से दी जाती है। शक्तिपात दीक्षा सभी दीक्षाओं में श्रेष्ठ होती है। कई जन्मों के अच्छे कर्म जब इकठ्ठा होते हैं तब व्यक्ति के जीवन में ऐसा समय आता है कि उससे शक्तिपात दीक्षा मिल सके। इसे प्राप्त करना जीवन का सोभाग्य होता है।

शक्तिपात के लक्षण क्या हैं ?

शक्तिपात केवल समर्थ सद्गुरु ही कर सकता है जिसकी स्वयं की कुंडलिनी जागृत हो और ध्यान की पूर्ण अवस्था को प्राप्त हो। इस क्रिया में गुरु अपने अंगूठे को अपने शिष्य के आज्ञा चक्र (Third Eye) रख कर अपनी तपस्या का अंश देते हैं और कुछ अति गूढ क्रिया करते हैं। इसके परिणाम स्वरूप शिष्य की कुंडलिनी जोकि मूलाधार चक्र में सुप्त अवस्था में थी सक्रिय होती है। इसके बाद पूर्ण रूप से कुण्डलिनी जागृत करने के लिए शिष्य को स्वयं साधना करनी पड़ती है।

Final Words:-

मैंने यह आर्टिकल ‘Shaktipat Kya Hai’ वर्षों के अनुभव और रिसर्च के आधार पर लिखा है । मैं आशा करता हूँ कि आप सभी को यह आर्टिकल पसंद आया होगा । किसी भी प्रकार के प्रशन के लिए आप हमे लिख सकते हैं ।

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